** या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थित । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमःया देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभुतेषु बुद्धि रूपेण थिथिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु तृष्णा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु विद्या-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु भक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमःया देवी सर्वभूतेषू क्षान्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
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मातंगी देवी इतिहास

              श्री मातंगी देवी अर्थात राजमाता दस महाविद्याओ की एक देवी है। मोड़ ब्राह्मन की कुल देवी है । मोहकपुर की मुख्या अधिष्टाता है देवी मातंगी की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है। जिस प्रकार त्रेता युग में सत्य मंदिर, द्वापर युग में वेद्भुवन, कलयुग में मोहेसपुर जग प्रसिद्ध ही उसी प्रकार मध्य कल में मोढेरा के रुप में मातंगी का यह स्थान जग प्रसिद्ध हुआ । श्री ब्रह्मा जी ने स्वयं के मुख से श्री माता को प्रकट किया है। मोहकपुर में बसे हुए ब्राह्मणों की रक्षा हेतु श्री माता की स्थापना की गयी। श्री माता के हाथो में पुस्तक, कमंडल होती है, वस्त्र श्वेत अर्थात सफ़ेद होते है ये महालक्ष्मी और रुद्राणी भी कहलाती है।
मातंगी देवी इतिहास- matangi maa history-  matangi mata history in hindi-
    श्री माता की रक्षा कवच में वास करते करते ब्राह्मणों को सेकड़ो वर्ष बीत गए। तभी वहा कर्नाट नाम का एक राक्षस हुआ। यह राक्षस ब्राह्मणों को खूब परेशान करता और यज्ञ , पूजा विधान आदि में भारी विघ्न उत्पन्न करने लगा थक हार के सभी ब्राह्मन इस पीड़ा से मुक्ति हेतु श्री माता के पास पहुचे श्री माता ने सभी ब्राह्मणों को आशीर्वाद प्रदान कर राक्षसों का नाश करने का वचन दिया। तत्पश्चात राक्षसों का वध हेतु श्री माता ने विशिष्ट तेजस्वी स्वरुप धारण किया श्री माता का यही रूप मातंगी मोढेशवरी के रूप में अवतरित हुआ। मातंगी लाल रंग के वस्त्र धारण करती है , सिंह की सवारी करती है लाल होठ वाली व अत्यंत स्वरुपवादी होती है । मातंगी लाल पादुका, लाल माला, धारण करती है।
    हाथो में धनुषबाण , खेटक,खड़क, कुल्हाड़ी, गर्डर, परिंह, शंख , घाट, पाश, कतार, छत्र , त्रिशूल, मद्यपात्र, अक्षमाला, शक्ति तोमर, महा कुम्भ आदि अपने हाथो में धारण करती है। मातंगी माता कढ़े व बाजुबंध पहनती है । श्वान ( कुते ) को अपने साथ रखती है। श्री मातंगी इसी रूप में आज मोढेरा में मोदेश्वरी माता के रूप में साक्षात् विद्यमान है। माता मातंगी के ऐसे स्वरुप को देख कर्नाट राक्षस मोहवश हुआ , और उसने मातंगी के समक्ष अघटित मांग रखी परन्तु देवी ने तो उसे ललकार कर युद्ध शुरू किया और अंत में कर्नाट राक्षस का वध किया । इसी वध से प्रसन्न होकर विद्रो और वणिको ने माता मातंगी की स्तुति करी। मातंगी ने कुटुंब के सभी मांगलिक कार्यो में मातंगी की स्तुति व पूजा करने की आज्ञा दी। विशेष रूप से माघ मास की कृष्ण तृतीया के दिन मातंगी की वटवृक्ष के नीचे पूजा करने का विशेष महत्व है। इस पूरी कथा के फल स्वरुप कहा जा सकता है। की :-
  1. मोड़ ब्राह्मणों के इष्टदेव श्री राम है और उन्होंने ही हनुमान जी को मोड़ समाज की रक्षा हेतु मातंगी के निवास स्थल मोढेरा पर संरक्षक के रूप में नियुक्त किया है। 
  2. मोड़ समाज की कुलदेवी मातंगी देवी है जिन्होंने राक्षसों के विनाश के लिए विशिष्ट तेजस्वी स्वरुप धारण किया है। वो मातंगी मोदेश्वरी अठारह भुजा वाली है जिनका पूजन कुटुंब के सभी मांगलिक कार्यो में करना चाहिए । 
  3. चेत्री तथा अश्विनी दोनों ही नवरात्री में उपवास और मातंगी की पूजा करने का मोड़ ब्राह्मणों का विधान है । 
  4. मोड़ ब्राह्मन मूल रूप से गुजरात के निवासी है। 
              श्री राम द्वारा रावन की ब्रह्म हत्या हुई जिसके प्रायाषित हेतु श्री राम ने कुल गुरु वशिष्ट से पूछा तब गुरु वशिष्ट ने उतर दिया की आप तो स्वयं भगवान के अवतार हो। परन्तु राम के अतिआग्रह के वश में होकर कुल गुरु वशिष्ट ने कहा की सभी विधि विधान मन की शुद्धी के लिए ही होते है परन्तु फिर भी पृथ्वी की ऊपर एक धर्मरान्य नाम का एक श्रेठ तीर्थ है। वहा यमराज , सूर्य पुत्र ( शनि) , सूर्य पत्नी ( संज्ञा ) ने भी तप किया है यही स्थल ब्रह्म हत्या की निवृति हेतु श्रेठ है। धर्मरान्य में प्रभु श्री राम पूरे परिवार के साथ प्रवेश कर रहे थे तभी उनके विमान, हाथी , घोडे आदि अचानक रुक गए। श्री राम ने गुरु वशिष्ट से कारण पूछा तो कुलगुरु वशिष्ट ने बताया की धर्मरान्य में पैदल चल कर जाना चाहिए यहाँ मातंगी का वास है। तब श्री राम ने सुवर्ण नदी के किनारे विशाल पढाव दिया और वहा अपने विमान, घोडे, हाथी आदि को रोका ।
     नदी में स्नान विधि करी और पैदल चल कर मातंगी के दर्शन किये और देवी की अनुशंसा से धर्मरान्य का जीर्णोधार करने का संकल्प लिया । श्री राम त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा , विष्णु , महेश की आराधना करते है तीनो देवताओ ने वहा प्रकट होकर ब्राह्मणों को दान देने की बात कही । तभी तीनो देवो की उपस्थिति में ही धर्मरान्य का जीर्णोधार और भव्य प्रसाद का निर्माण कार्य शुरू किया। श्री राम ने ब्राह्मणों को ५५ गाँव दान में दिए । तत्पश्चात हनुमान जी वेश्य को लेकर आये एवं खेतो में खेती का कार्य आरम्भ किया । श्री राम ने धर्मरान्य के पुनरुधार के संस्मरण में मोड़ वणिको को एक खड़क और दो चम्मर भेट किये। उसी दिन से विवाह के समय वर अपने पास एक तलवार और दो चम्मर रखता है।
     श्री राम ने अनेक मंदिरों का जीर्णोधार किया । बकुल के वृक्ष के नीचे जहा सूर्य पत्नी संज्ञा ने तप किया था वहा श्री राम ने बहुलार्क नाम का सूर्य का भव्य मंदिर बनाया। जहा पर श्री राम के हाथो ही कुलस्वामी सूर्य की मूर्ति की स्थापना की गयी। आज भी सूर्य मंदिर के अवशेष यथारूप में उपस्थित है और उनकी शिल्प और कलाकृति बेजोड़ और अत्यंत ही दुर्लभ है। इस सूर्य मंदिर को देख कर ये अनुमान लगाया जा सकता है की ये ११ वि शताब्दी में ही निर्मित हुआ होगा। मोहेक्पुर में कन्या कुंज कन्नोज नाम के रजा का राज इस प्रदेश पर शुरू हुआ। वह राजा पराक्रमी था उसने वैष्णव धर्म को छोड़ बोद्ध धर्म को स्वीकार किया। बोद्ध गुरुओं की उपदेशो से वहा की प्रजा भी बोद्ध धर्म स्वीकार करने लगी। राजा ने अपनी पुत्री रत्न गंगा का विवाह वल्लभी राजा के साथ किया । उसने ब्राह्मणों के अधिकार छीन लिए ब्राह्मणों ने श्री राम चन्द्र जी के ताम्र पत्रों पर लिखे हुए दान पत्र भी बताये पर राजा नहीं माना । उसने कहा की तुम्हारे रक्षक हनुमान जी है उन्ही के पास से भूमि ले लेना। सभी ब्राह्मन धर्मरान्य वापस आये । चतुर दलीय करने वाले ब्राह्मन चतुर्विद, अर्थात चतुविधि के नाम से जाने जाते है। चतुविधि ब्रह्म समाज के १५ हज़ार में से २० तथा ३ हज़ार त्रेवाधेया के ११ इस प्रकार कुल ३१ ब्राह्मन रामेश्वर पहुचे ।
     चतुर्वेदी ब्राह्मन वापस आ गए और बाकी के त्रेवैद्य ब्राह्मन अनेक संकट सहते हुए रामेश्वर पहुचे। विद्रोहियों के आक्रमण से प्राचीन पूरण प्रसिद्ध मोढेरा नगरी खंडरो में तब्दील हो गयी। प्रजा और बस्ती अलग अलग दिशा में बिखर गयी इनमे जो अदालाज़ गाँव में गए वो अद्लाजा कहलाये जो मांडल गाँव में गए वो मान्दलिये कहलाये । इस प्रकार अदालजा व मंडलीय दोनों ही जगह निवासरत लोग मुख्यतः तो वणिक ही थे । खेती करने वाले लोग पटेल की जाती से जाने गए तेल का काम करने वाले लोग चंपा नेरी मोड़ और नाव चलाने वाले लोग मधुकर मोड़ जाती के नाम से जाने गए। समय गुजरता गया और गुजरात के राजपूत राजा करण देव वाघेला, दिलली के अल्लोउद्दीन खिलजी , अलफ खान सेनापति के हाथो यह राजा परस्त हुआ संवत १३५६ में गुजरात में मुस्लिम राज सत्ता आई और गुजरात के मंदिर टूटने लगे मोढेरा के मोड़ ब्राह्मन केवल वेद पाठ करने वाले ही नहीं थे वे तो विपरीत परिस्थितियों में स्वयं और परिवार की रक्षा हेतु भी वचन बध थे। मोड़ ब्राह्मणों में जयेष्ट मल्ल ब्राह्मन तो वज्र मुष्टि पहलवान थे और सेना में भी मुख्य थे। सम्पूर्ण मोढेरा गाँव ने मुस्लिन सेना का डट कर सामना किया ।
      मंदाव्य गोत्र के पराक्रमी ब्राह्मन सुभट विठलेश्वर मोड़ ने मोड़ ब्राह्मणों की सेना संगठित की और ६ माह में शत्रुओ को थका दिया। तत्पश्चात दोनों ही सेना में सुलह हुई और फेसला हुआ की ब्राह्मन मुस्लिमो को पांच हज़ार सोने की मोहर दे तो मुस्लिम अपने घर हटाकर जमीन खाली करने को तैयार है। इस प्रकार सुलह होने पर मोढेरा गाँव के दरवाजे खोल दिए गए। आखिर में मोड़ ब्राह्मणों के साथ धोखा हुआ मुस्लिम सेनिको ने मोढेरा को लुट लिया , सूर्य मंदिर को तोड़ दिया , और मातंगी माता की मूर्ति को खंडित करने हेतु आ ही रहे थी इस भय से ब्राह्मणों ने मातंगी मूर्ति को जमीं में गहरी सुरंग ( वाव ) कर मातंगी मूर्ति को लोहे की चैन से बांधकर उसमे समाहित कर दिया । मातंगी मूर्ति को समाहित करने वाली यह वाव ही धर्मवाव के रूप में प्रसिद्ध हुई जो आज भी मोढेरा में यथावत है। जिस दिन मातंगी मूर्ति सुरंग में भेजी गयी उस दिन धुलेटी का दिन था। गुजरात में गायकवाड सरकार की सत्ता में धार्मिक स्थलों की अवनति रुक गयी तथा इस समय मोड़ ब्राह्मन मोढेरा, मालवा, उज्जैन, इंदौर, भोपाल आदि शेहरो में बसने लगे ।
      सयाजी राव गायकवाड ने रेलवे लाइन को मोढेरा तक बनवाया जिससे भक्त आसानी से मातंगी धाम तक पहुच सके । इसी बीच नाथुलाल गिरधारी लाल पारीख ने यह संकल्प लिया की जब तक मातंगी मंदिर का जीर्णोधार नहीं होता तब तक वे सर पर पगड़ी और पैर में मोजडी धारण नहीं करेंगे । ब्रिटिश राज्य में बड़ोदरा शहर की कायाकल्प हेतु लाटरी निकली गयी एवं चंदा एकत्रित किया गे। संवत १८६२ में जीर्णोधार प्रारंभ किया गया विक्रम संवत १८६६ महा सूद की १३ वे दिन अर्थात तेरस के दिन मातंगी माता की प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का दिन आया । दो समर्थ विद्वान् जामनगर निवासी शास्त्री जी हाथी भाई हरी शंकर और अहमदावाद निवासी शास्त्रीजी रामकृष्ण हर्ष जी के हाथो विधि विधान से मातंगी की प्राण प्रतिष्ठा की गयी इसी दिवस को महसूद १३ दिवस अर्थात तेरस के दिन मातंगी का पाटोत्सव आयोजित किया जाता है। 
इस प्रकार आज दिन तक मातंगी की मूर्ति मोढेरा में उस वाव में ही समाहित है वर्षो बाद भी इसे उस वाव में से नहीं निकाला गया कारण यह की जिस समय ब्राह्मणों द्वारा इस मूर्ति को वाव में समाहित किया गया था तब ब्राह्मणों ने इस भय से की मुस्लिमो द्वारा इस मूर्ति को चैन खीचकर वाव में से निकाला नहीं जा सके इस हेतु माता मातंगी के समक्ष यह मनत रखी थी की जब तक मोड़ समाज के लोग मोढेरा में मातंगी के समक्ष एक साथ सवा लाख किलो नमक का भंडारे में उपयोग नहीं करेंगे तब तक मूर्ति को बाहर नहीं लाया जा सकेगा यही कारण है की आज भी मूर्ति उक्त वाव में ही है। मोढेरा भक्त मंडल द्वारा उक्त वाव के चारो और लोहे की जाली से स्थान को सुरक्षित किया गया है , एवं मातंगी धाम मोढेरा में मातंगी की उसी मूर्ति की प्रतिकृति के रूप में मातंगी की मूर्ति स्थापित की गयी ।

मातंगी फोटो गेलेरी

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मातंगी मंदिर झाबुआ फोटो गेलेरी

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चार धाम यात्रा

चार धाम यात्रा- matangi-darshan-jhabua-chaar-dhaam-yatra

 मातंगी ट्रस्ट द्वारा प्रतिवर्ष झाबुआ से यात्रा का आयोजन किया जाता है। जिसमें यात्रा में भाग लेने वाले भक्तो को चार धाम की यात्रा के साथ मॉ मातंगी  धाम की यात्रा भी कराई जाती है इस हेतु भक्तो से अतिन्युनतम शुल्क पर व उच्च गुणवत्ता युक्त सुविधाए प्रदान करते हुए उन्हे यात्रा का लाभ दिया जाता है। यह यात्रा प्रतिवर्ष नियोजीत परसमय पर ले जाई जाती है जिसके लिए यात्रा में शामिल होने वाले भक्तो की सुची बनाकर उस आधार पर आगामी कार्यक्रम नियोजित किएजाते है। 
            यह यात्रा 4 से 5 दिन की होती है परंतु तीर्थ स्थलो की संख्या एवं दुरी के हिसाब से समयावधि घट या बढ सकती है। यात्रा हेतु पुर्ण कार्यक्रम पुर्व नियोजीत होता है। यात्रा में बस मार्ग ,रेल मार्ग आदि का प्रयोग किया जाता है। धार्मिक स्थानो की दुरी अधिक होने के कारण संपुर्ण यात्रा बस मार्ग द्वारा ही करना संभव नही हो सकता है अतः इस हेतु विभिन्न वाहनो के द्वारा स्थलो तक पहुचना पडता है। स्थल तक पहुचने के बाद भक्तो को सभी सुविधाए जैसेः- भोजन ,ठहरना आदि सुविधाए निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती है इस हेतु भक्तो से कोई अन्य राशि नही ली जाती है। 
      यात्रा में बुर्जुग भक्त भी होने के कारण यात्रा हेतु सबसे सुविधाजनक विकल्पो का इस्तेमाल किया जाता है जिससे की भक्तो को किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पडे। इस यात्रा में जाने हेतु भक्तो से केवल उनके दैनिक उपयोग की वस्तुओ को ही साथ लाने का आग्रह किया जाता है शेष संपुर्ण सुविधाए ट्रस्ट द्वारा ही उपलब्ध कराई जाती है। यात्रा में शामिल होने के लिए नियत समयावधि के अंदर ट्रस्ट से संपर्क कर यात्रा का लाभ किया जा सकता हैं ।

यात्रा फॉर्म डाउनलोड करे नीचे डाउनलोड लिंक पर क्लिक करे ।

फॉर्म को पूर्णतः भरकर हमे ईमेल करे ,
या ट्रस्ट के पते पर डाक द्वारा भेजे।

आगामी योजना

   मातंगी ट्रस्ट निम्न बिंदुओ पर आगामी कार्यक्रमो की योजना बनाकर उनके क्रियान्वन की और अग्रसर है-

  1. मातंगी मंदिर का निर्माण पश्चात मंदिर का सौंर्दयीकरण
  2. सर्व ब्राहमण समाज हेतु धर्मशाला का निर्माण करना जो सभी सुविधाओ से सुसज्जीत हो ।
  3. विभिन्न धार्मिक अवसरो को समाजजनो के मध्य वृहद रूप में मनाने हेतु भावी योजनाओ का क्रियानवयन। समाज के बेरोजगार शिक्षित युवक युवतियो हेतु समाज स्तर पर रोजग़ार हेतु व्यवस्था करना।
  4. समाज में होने वाले विभिन्न आयोजन जिनमें विवाह समारोह, यज्ञ, अन्य त्यौहारो हेतु पुर्व नियोजन कार्यक्रम बनाना जिससे कार्यक्रमो को सुचारू एवं सुनियोजित तरीके से संपन्न कराया जा सके।
  5. ट्रस्ट द्वारा आगामी समय में मंदिर प्रांगण में सर्व सुविधायुक्त अतिथिगृह, भोजनालय आदि स्थल बनवाने का प्रस्ताव है।
  6. मदिर प्रांगण में ही एक सुंदर बगीचा बनाने की भी योजना है
  7. समाज में होने वाले विभिन्न समारोह जैसे विवाह परिचय सम्मेलन, यज्ञोपवित संस्कार, शतचंडी यज्ञ , हवन, आदि के समय समारोह स्थान पर भारी मात्रा भक्त उपस्थित होते है इस हेतु एक भव्य हॉल का निर्माण करना
  8. मातंगी मंदिर तक पहुचने का रास्ता अत्यंत पथरीला होने की वजह से भक्तो को कई परेशानियों का सामना पडता है इस हेतु मार्ग डामरीकरण एवं रात्रि में भक्तो के आगमन हेतु उचित प्रकाश व्यवस्था करना है।
  9. उपरोक्त कार्यो को निष्ठापूर्वक आकार प्रदान कर एक सभ्य समाज का निर्माण करना।

दान करे

Matangi Darsha Donation


मातंगी ट्रस्ट मैं दान करने के लिए कृपया ट्रस्ट का खाता नम्बर 30684703636 (स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ) मैं दान किया जा सकता हैं ट्रस्ट के लिए ड्राफ्ट , चेक आदि होने की दशा मैं सभी कार्यवाही मातंगी पारमार्थिक ट्रस्ट के नाम से ही हो .

सुविधाए

मातंगी मंदिर में दर्शनाथ भक्तो के लिए वर्तमान में तो उचित सुविधाये उपलब्ध नही है। परंतु भविष्य में इस हेतु ट्रस्ट द्वारा महत्वपुर्ण कदम उठाए जाना है। जिनमें भक्तो के रूकने , भोजन , समाज में होने वाले विभिन्न कर्यक्रम हेतु उपयुक्त आवास सुविधा, समाज में होने वाले धार्मिक कार्यक्रमो में विशाल भंडारे हेतु धर्मशाला की सुविधा आदि सभी सुविधाओ की व्यवस्था हेतु उपयुक्त कदम उठाना है। 
       ट्रस्ट द्वारा आगामी समय में मंदिर में सर्व सुविधायुक्त अतिथिगृह, भोजनालय आदि स्थल बनवाने का प्रस्ताव है। इसके अतिरिक्त मदिर प्रांगण में ही एक सुंदर बगीचा बनाने की भी योजना है ताकि मंदिर में आने वाले भक्त संध्या समय कुछ देर यहॉ रूक कर हरियाली युक्त वातावरण का लाभ ले सके। तथा समाज में होने वाले विभिन्न समारोह जैसे विवाह परिचय सम्मलेन , यज्ञोपवित संस्कार, षतचंडी यज्ञ , हवन, आदि के समय समारोह स्थान पर भारी मात्रा भक्त होते है है इस हेतु एक भव्य हॉल का निर्माण करना जिससे कि समारोह को सफलता पुर्वक बिना किसी विघ्न आयोजित किया जा सके।
      इसके अतिरिक्त मंदिर सडक से करीब 200 मी की दुरी पर है व सडक से मंदिर तक आने वाला पुरा रास्ता पथरीला है इससे मंदिर पैदल आने वाले व गाडी से आने वाले भक्तो को कई कठिनाईयो का सामना करना पडता है व रात्रि के समय भी उचित लाइट व्यवस्था न होने के कारण बेहद कठिनाई होती है। इस ट्रस्ट द्वारा नगरपालिका का ध्यान इस और आकर्षित कराया गया है। तथा जल्द ही मंदिर समिति एवं न.पा परिषद् मिलकर इस और महत्वपुर्ण कदम उठाऐगे। सर्वप्रथम मार्ग डामरीकरण एवं उचित प्रकाश व्यवस्था करना ताकि मंदिर आने वाले भक्तो को किसी भी प्रकार की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कठिनाईयो का सामना न करना पडे। इस पर सर्वसहमति से विचार किया जा रहा है। एवं समय रहते ही कार्य का भली भॉती संचालन ट्रस्ट की देखरेख में शुरू हो जाएगा। 
ट्रस्ट का संकल्प मातंगी धाम को एक तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करना है ताकि शहर म मातंगी धाम को एक धार्मिक सहिष्णुता के स्थान का दर्जा मिल सके।

आरती ,स्तुति एवं चालीसा

मातंगी मोढेश्वरी चालीसा- मोढेश्वरी स्तुत्यष्टक- matangi chalisa


मंदिर विषयक

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हरियाली युक्त वातावरण में निर्मित मातंगी मंदिर चारो और से हरियाली से ढकॉ हुआ है। मंदिर में खडे होकर जिस और भी नजर जाती हरियाली और सुंदरता से भरे दृश्य ही दिखाई देते मातंगी धाम पर ऐसी हरियाली विहंगम दृश्य देखकर अनुभुति होती है कि प्राचीनकाल में निशचित ही यहॉ कोई देव्य शक्ति प्रत्यक्ष रूप में विद्यमान रही होगी जिसके ही दिव्य साये के रूप में आज यह स्थल इतनी विशालता एवं इतने वर्षो के बाद भी आज उसी प्राचीन काल की मौजुदगी इन हरियाली आछादित वादियो में दर्शा रहा है। 
     फ़रवरी २०११ में मातंगी धाम झाबुआ में नवनिर्मित मंदिर स्थल का निर्माण पश्चात् मातंगी की मूर्ति स्थापना की गयी , कार्यक्रम चार दिनों का था जिसमे मातंगी मूर्ति की स्थापना के साथ ही मातंगी का पाटोत्सव भी भव्य रूप में मनाया गया। सेकडो वर्ग फीट में फैला मातंगी मंदिर शहर के बिल्कुल मध्य भाग में स्थित है मातंगी मंदिर इंदौर अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही स्थित है। 
     झाबुआ शहर के मध्य भाग में स्थित मातंगी मंदिर कई बडे शहरों जिनमें इंदौर, दाहोद आदि कई शहरों से बिल्कुल सटा हुआ है। मातंगी धाम से दाहोद शहर की दुरी मात्र 75 कि.मी है , व इंदौर शहर से दुरी मात्र 150 कि.मी है। इसके अलावा मध्य बिंदु में स्थित होने के कारण अन्य स्थानो से भी मातंगी धाम की दुरी अधिक नही है। मातंगी धाम के पास में ही कई छोटे छोटे गॉव है जिनमें रानापुर, थांदला , जोबट, मेघनेगर आदि है जो मातंगी धाम से कुछ ही कि.मी की दुरी पर है  
     इनमें मेघनगर जो कि मातंगी धाम से मात्र 15 कि.मी की दुरी पर स्थित है वहॉ पर रेल्वे स्टेशन की सुविधा भी है अन्यत्र स्थानो से आने वाले लोगो के लिए जो रेल मार्ग से मातंगी तक पहुचना चाहते है वे सीधे ही रेल मार्ग से मेघनगर आकर यहॉ से उपयुक्त व्यवस्था बस ,जीप आदि व्यवस्था कर बिना किसी परेशानी के मातंगी धाम तक पहुच सकते है। -

बालाजी धाम

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    मातंगी मंदिर प्रांगण में ही सिध्दपीठ बालाजीधाम है। बालाजी के इतिहास के बारे मे तो किसी के पास वास्तविक जानकारी तो नही है लेकिन बताया जाता है कि कभी घने जंगलो के बीच पहाडी पर हनुमानजी का छोटा सा चबुतरा हुआ करता था कृषि विभाग के कर्मचारी नित्य पुजन प्रारंभ किया । 
             वर्ष 1993 में जनसहयोग से सुंदर व मनोरम मंदिर का निर्माण हुआ और विधिवत भगवान की प्राण प्रतिष्टा का गई।पिछले 16 वर्षो से प्रतिदिन यहॉ रामायण का पाठ किया जा रहा है। प्रति शनिवार मंदिर में सुंदरकांड का पाठ भी किया जाता है। पुराणो के अनुसार नित्य पुजन पाठ लगातार 12 वर्षो तक करने से वह स्थान सिद्व हो जाता है। इसलिए बालाजी धाम को सिद्वपीठ बालाजी धाम कहा जाताहै। मंदिर की देख रेख का जिम्मा कृषि विभाग के कर्मचारी श्री शिवनारायण पुरोहित पिछले 16 वर्षो से सभाल रहे है। श्री पुरोहित की सेवानिवृति का समय निकट होने से अब यह दायित्व सभी कई सहमति से श्री राकेश त्रिवेदी को सौपा या है वे कार्य पुरी निष्ठा से कर रहे है।

परशुराम फोटो गेलेरी

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मोढेश्वरी स्तुत्यष्टक

देवी मोढ द्विजो तणी भगवती मातंगी जे मातृतारक्षा मोढ समस्तनी करी रही श्री मोढ मातंगिकासिंहारूढ थई अढार भुजथी चका युधो धारती,सीताराम थकी समर्चित महा मोढेश्वरी शोभती...
धर्मा रण पुराण पुण्य स्थलमां श्री राम अध्यक्षमा,सीताराम समेत यज्ञ करता मोढेश्वरी साक्षीमां,उदगाता सह्ययाजुषो मली करो मोढर्षिओ प्रार्थना,तेथी तुं परितुष्ट मोढ पर छे, नित्य अभ्यर्थना...
गोत्रोनो समवाय स्थापी जगमां विप्रो थकी पूजता,पट मोढा द्विगिभागी वैश्यदलमां तु नित्य छे वंदिता,तारे पूर्ण कृपा थकी प्रसरी छे मोढो तणी वल्लिका,पूजाने करी वंदना तुज पदे, अर्पे तेने मालिक...
धर्मोद्वारक रामचंद्र करतां तारे पूजा प्रेमथीयज्ञ स्तंभ सभा सुमंडप रच्या मोढेश्वरी नामथी,स्नानार्थे पृथु सूर्यकुंड रचना श्री विश्वकर्मा तणी,छे अदभूत निश्वलेष्ट कृतिए श्री मोढ देवी तणी...
देवीना गणमां गणेश्वरी थई, वापी तटे तुं वसे,वापी कूप तणा दयार्द जल तुं अंतरथी पाता हसे,भक्तोने द्विजवर्य मोढ सघलां तारी कृपामां वसे,छाया छयी अखंड तारी जगमां तुं देवी सौमां वसे...
देवीने द्विज मोढ ज्यां परवरी छोडी गया पुरी,देवी सागर तुल्य वावजलमां डूबेल ते कालथी,ज्यांथी ब्राह्मण-पुण्य कर्म फलदा देवी पूजा लोप छे.त्यांथी मोढ विरकत संग तजती जे मोढनो प्राण छे...
मोढोत्पिति अने विकास करवा श्री रामनी लालसा,मोढेरा युंरी “मूलराज” हठथी मोढे करी खालसा,तोये वृक्ष समग्र मोढ कुलनुं, पट मोढ शाखा थतां,मोढेरा कुलदेवीने नमनथी सौ मोढ पुंजी जता...
मातंगीनो विनथी स्तुति पाठ कीधो,वंदी शिरे, हृदयथी बहु ल्हाव लीधो,माता दयाली तुं द्वार बधां समान,मोढेश्वरी तव पदे करूं हुं प्रणाम...
पुष्पांजली भगवती पर थाती ज्यारे,स्तोत्रो भणी हृदयथी धरूं ध्यान त्यारे,पूजा प्रदोष समये विधिथी करूं ज्यां,मोढेश्वरी कुशल थै करूणा करे त्यां...
स्तोत्र शुद्ध हृदये भणशे प्रदोषे,तेना खरे त्रिविध ताप समाई जाशे,मोढेश्वरी द्विजवरा हृदयेष्ट देवी,लक्ष्मीरूपी जननी तुं परमेष्ट देवी...१०

श्री मातंगी मोढेश्वरी चालीसा



वंदु विनायक विध्नहर, शारद करो सहाय,
आनंदनी याचना मोढेश्वरी गुण गवाय.प्रणमुं पाय मातंगी मात,मोढेश्वरी नाम तुज ख्याता (१)
मातंगी वास वाव मही कीधो,आश्रय सर्व मोढोने दीधो, (२)
सोल शृंगार सिंहारूढ शोभे,भुज अढार दर्शन मन लोभे (३)
वंदन चरणामृत सुखदाई,आतमना पड शत्रु हणाये (४)
भरतखंड
शुभ पश्र्विम भागे,धरमारण्य क्षेत्र तप काजे, (५)
साधक रक्षक भट्टारीका कहावे,तपस्वी तप तपवा अही आवे (६)
देव देवी जपतप अहीं जापे,मा भट्टारीका तप रक्षण आपे (७)
तीरथ सरस्वती सुखदाई,पितृ शांति अहीं पींडथी थाये. (८)
मोक्ष धाम देहुती माता,आश्रम कपिल शास्त्र विख्याता (९)
मोढेरा शुभ स्थान प्रतापी,मोढेश्वरी चतुर युग व्यापी (१०)
सूर्य मंदिर बकुंलार्क अजोडा,विश्वकर्माकृत रविकुंड चौडा (११)
धरमारण्य धरा अति पावन,श्री रामयज्ञे मातंगी सुहावन (१२)
महासुद तेरस सुखदाता,प्रगट्यां मातंगीयज्ञे माता (१३)
जयजयकार जगत मही थाये,सुमन वरसे देवो जय गाये (१४)
सूर्यकुंड सुभग फलदाता,झीले जल मातंगी माता (१५)
श्री रामसीता यज्ञ आराधे,सत्यपुरे मातंगी साधे (१६)
लक्ष्मीरूप मातंगी माता,पूजन नैवेद सर्व सुखदाता (१७)
वडा, लाडु, दुधपाक सुहावे,नैवेद धरे सीता प्रिय भावे (१८)
समस्त मोढ तणी कुलमाता,अष्ठसिध्धि नवनिधि फलदाता (१९)
महासुद तेरस थाल धराये,मोढ चडती दिन प्रतिदिन थाये (२०)
अष्टादश भुज आशिष आपे,स्थान नीज सत्यपुरे स्थापे (२१)
सतयुगे सतपुरी कहावे,त्रेतानाम महेरकपुर भावे (२२)
द्वापर युग मोहकपुर सोहे,मोढेरा कलयुग मन माहे (२३)
धर्मराज शिव तप आराधे,सहस्त्र यर्षे शिव दर्शन साधे (२४)
प्रगट्यां शिव शुभ आशिष आपे,स्थान नीज धर्मेश्वर स्थापे (२५)
वदे महेश्वर कृपा निधाना,विशावनाथ काशी समस्थाना (२६)
मात रांदल अश्वनी रूप लीधा,ध्वादश वर्ष कठीन तपकीधां (२७)
सूर्यराणी रांदल सुखदायी,उपनामे संज्ञा कहेवाये (२८)
तप प्रभाव संज्ञा सुखदाई,पति सूर्यदेवमुख दर्शन थाये (२९)
संज्ञाए ज्यां तप आराध्या,सूर्य मंदिर रामे त्यां बांध्या (३०)
प्रति सुद तेरस व्रततप थाये,मले मान्युं यम भीती जाये (३१)
पूजे कन्या मन कोड पुराये,तपथी विधवाना दु:जाये (३२)
सेवे सधवा सर्व सुख थाये,त्र्हेम, मद अने कुसंप जाये (३३)
नम: मातंगी नाम मुख आवे,भूत पिशाच भय अति दूर जावे (३४)
मोढेश्वरी तव पूजन प्रभावे,सत्य दया तप सौच दिल आवे (३५)
कष्ट भंजन मातंगी माता,बने सर्व ग्रहो सुखदाता (३६)
विद्यार्थी मातंगी जप जापे,वधे विद्या, बुद्धि धन आपे (३७)
मातंगी यात्रा अति सुख आपेकर्म बंधन भवभवना कापे (३८)
दलपतराम मात गुण गाये,उपनाम आनंद कहेवाये (३९)
संवत वीस सुडतालीस मांहे,मातंगी चालीसा आनंद गाये (४०)
दोहा:
श्री मोढेश्वरी चालीसा, भावे रोज भणायवधे विद्या, धन, सुसंतति, पदारथ चार पमाय
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