देवी मोढ द्विजो तणी भगवती मातंगी जे मातृतारक्षा मोढ समस्तनी करी रही श्री मोढ मातंगिकासिंहारूढ थई अढार भुजथी चका युधो धारती,सीताराम थकी समर्चित महा मोढेश्वरी शोभती...१
धर्मा रण पुराण पुण्य स्थलमां श्री राम अध्यक्षमा,सीताराम समेत यज्ञ करता मोढेश्वरी साक्षीमां,उदगाता सह्ययाजुषो मली करो मोढर्षिओ प्रार्थना,तेथी तुं परितुष्ट मोढ पर छे, ए नित्य अभ्यर्थना...२
गोत्रोनो समवाय स्थापी जगमां विप्रो थकी पूजता,पट मोढा द्विगिभागी वैश्यदलमां तु नित्य छे वंदिता,तारे पूर्ण कृपा थकी प्रसरी छे मोढो तणी वल्लिका,पूजाने करी वंदना तुज पदे, अर्पे तेने मालिक...३
धर्मोद्वारक रामचंद्र करतां तारे पूजा प्रेमथीयज्ञ स्तंभ सभा सुमंडप रच्या मोढेश्वरी नामथी,स्नानार्थे पृथु सूर्यकुंड रचना श्री विश्वकर्मा तणी,ए छे अदभूत निश्वलेष्ट कृतिए श्री मोढ देवी तणी...४
देवीना गणमां गणेश्वरी थई, वापी तटे तुं वसे,वापी कूप तणा दयार्द जल तुं अंतरथी पाता हसे,भक्तोने द्विजवर्य मोढ सघलां तारी कृपामां वसे,छाया छयी अखंड तारी जगमां तुं देवी सौमां वसे...५
देवीने द्विज मोढ ज्यां परवरी छोडी गया आ पुरी,देवी सागर तुल्य वावजलमां डूबेल ते कालथी,ज्यांथी ब्राह्मण-पुण्य कर्म फलदा देवी पूजा लोप छे.त्यांथी मोढ विरकत संग तजती जे मोढनो प्राण छे...६
मोढोत्पिति अने विकास करवा श्री रामनी लालसा,मोढेरा युंरी “मूलराज” हठथी मोढे करी खालसा,तोये वृक्ष समग्र मोढ कुलनुं, पट मोढ शाखा थतां,मोढेरा कुलदेवीने नमनथी सौ मोढ पुंजी जता...७
मातंगीनो विनथी स्तुति पाठ कीधो,वंदी शिरे, हृदयथी बहु ल्हाव लीधो,माता दयाली तुं ज द्वार बधां समान,मोढेश्वरी तव पदे करूं हुं प्रणाम...८
पुष्पांजली भगवती पर थाती ज्यारे,स्तोत्रो भणी हृदयथी धरूं ध्यान त्यारे,पूजा प्रदोष समये विधिथी करूं ज्यां,मोढेश्वरी कुशल थै करूणा करे त्यां...९
आ स्तोत्र शुद्ध हृदये भणशे प्रदोषे,तेना खरे त्रिविध ताप समाई जाशे,मोढेश्वरी द्विजवरा हृदयेष्ट देवी,लक्ष्मीरूपी जननी तुं परमेष्ट देवी...१०
धर्मा रण पुराण पुण्य स्थलमां श्री राम अध्यक्षमा,सीताराम समेत यज्ञ करता मोढेश्वरी साक्षीमां,उदगाता सह्ययाजुषो मली करो मोढर्षिओ प्रार्थना,तेथी तुं परितुष्ट मोढ पर छे, ए नित्य अभ्यर्थना...२
गोत्रोनो समवाय स्थापी जगमां विप्रो थकी पूजता,पट मोढा द्विगिभागी वैश्यदलमां तु नित्य छे वंदिता,तारे पूर्ण कृपा थकी प्रसरी छे मोढो तणी वल्लिका,पूजाने करी वंदना तुज पदे, अर्पे तेने मालिक...३
धर्मोद्वारक रामचंद्र करतां तारे पूजा प्रेमथीयज्ञ स्तंभ सभा सुमंडप रच्या मोढेश्वरी नामथी,स्नानार्थे पृथु सूर्यकुंड रचना श्री विश्वकर्मा तणी,ए छे अदभूत निश्वलेष्ट कृतिए श्री मोढ देवी तणी...४
देवीना गणमां गणेश्वरी थई, वापी तटे तुं वसे,वापी कूप तणा दयार्द जल तुं अंतरथी पाता हसे,भक्तोने द्विजवर्य मोढ सघलां तारी कृपामां वसे,छाया छयी अखंड तारी जगमां तुं देवी सौमां वसे...५
देवीने द्विज मोढ ज्यां परवरी छोडी गया आ पुरी,देवी सागर तुल्य वावजलमां डूबेल ते कालथी,ज्यांथी ब्राह्मण-पुण्य कर्म फलदा देवी पूजा लोप छे.त्यांथी मोढ विरकत संग तजती जे मोढनो प्राण छे...६
मोढोत्पिति अने विकास करवा श्री रामनी लालसा,मोढेरा युंरी “मूलराज” हठथी मोढे करी खालसा,तोये वृक्ष समग्र मोढ कुलनुं, पट मोढ शाखा थतां,मोढेरा कुलदेवीने नमनथी सौ मोढ पुंजी जता...७
मातंगीनो विनथी स्तुति पाठ कीधो,वंदी शिरे, हृदयथी बहु ल्हाव लीधो,माता दयाली तुं ज द्वार बधां समान,मोढेश्वरी तव पदे करूं हुं प्रणाम...८
पुष्पांजली भगवती पर थाती ज्यारे,स्तोत्रो भणी हृदयथी धरूं ध्यान त्यारे,पूजा प्रदोष समये विधिथी करूं ज्यां,मोढेश्वरी कुशल थै करूणा करे त्यां...९
आ स्तोत्र शुद्ध हृदये भणशे प्रदोषे,तेना खरे त्रिविध ताप समाई जाशे,मोढेश्वरी द्विजवरा हृदयेष्ट देवी,लक्ष्मीरूपी जननी तुं परमेष्ट देवी...१०