** या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थित । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमःया देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभुतेषु बुद्धि रूपेण थिथिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु तृष्णा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु विद्या-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः या देवी सर्वभूतेषु भक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमःया देवी सर्वभूतेषू क्षान्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
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मातंगी देवी इतिहास- मोढ़ेश्वरी माता मंदिर

माँ मातंगी देवी (मोढ़ेश्वरी माता) का विस्तृत इतिहास और पौराणिक महत्व

              भारत की दिव्य शक्ति त्रिकोण में — महाविद्या त्रिपुरा सुंदरी, मातंगी और कामला का विशेष स्थान है। इनमें माँ मातंगी देवी दस महाविद्याओं में से एक हैं। उन्हें तांत्रिक स्वरूप की सरस्वती भी कहा जाता है। माँ मातंगी ज्ञान, वाणी, संगीत, कला और तंत्र साधना की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। श्री मातंगी देवी अर्थात राजमाता दस महाविद्याओ की एक देवी है। मोड़ ब्राह्मन की कुल देवी है । मोहकपुर की मुख्या अधिष्टाता है देवी मातंगी की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है। जिस प्रकार त्रेता युग में सत्य मंदिर, द्वापर युग में वेद्भुवन, कलयुग में मोहेसपुर जग प्रसिद्ध ही उसी प्रकार मध्य कल में मोढेरा के रुप में मातंगी का यह स्थान जग प्रसिद्ध हुआ । श्री ब्रह्मा जी ने स्वयं के मुख से श्री माता को प्रकट किया है। मोहकपुर में बसे हुए ब्राह्मणों की रक्षा हेतु श्री माता की स्थापना की गयी। श्री माता के हाथो में पुस्तक, कमंडल होती है, वस्त्र श्वेत अर्थात सफ़ेद होते है ये महालक्ष्मी और रुद्राणी भी कहलाती है।
मातंगी देवी इतिहास- matangi maa history-  matangi mata history in hindi-
    श्री माता की रक्षा कवच में वास करते करते ब्राह्मणों को सेकड़ो वर्ष बीत गए। तभी वहा कर्नाट नाम का एक राक्षस हुआ। यह राक्षस ब्राह्मणों को खूब परेशान करता और यज्ञ , पूजा विधान आदि में भारी विघ्न उत्पन्न करने लगा थक हार के सभी ब्राह्मन इस पीड़ा से मुक्ति हेतु श्री माता के पास पहुचे श्री माता ने सभी ब्राह्मणों को आशीर्वाद प्रदान कर राक्षसों का नाश करने का वचन दिया। तत्पश्चात राक्षसों का वध हेतु श्री माता ने विशिष्ट तेजस्वी स्वरुप धारण किया श्री माता का यही रूप मातंगी मोढेशवरी के रूप में अवतरित हुआ। मातंगी लाल रंग के वस्त्र धारण करती है , सिंह की सवारी करती है लाल होठ वाली व अत्यंत स्वरुपवादी होती है । मातंगी लाल पादुका, लाल माला, धारण करती है।
    हाथो में धनुषबाण , खेटक,खड़क, कुल्हाड़ी, गर्डर, परिंह, शंख , घाट, पाश, कतार, छत्र , त्रिशूल, मद्यपात्र, अक्षमाला, शक्ति तोमर, महा कुम्भ आदि अपने हाथो में धारण करती है। मातंगी माता कढ़े व बाजुबंध पहनती है । श्वान ( कुते ) को अपने साथ रखती है। श्री मातंगी इसी रूप में आज मोढेरा में मोदेश्वरी माता के रूप में साक्षात् विद्यमान है। माता मातंगी के ऐसे स्वरुप को देख कर्नाट राक्षस मोहवश हुआ , और उसने मातंगी के समक्ष अघटित मांग रखी परन्तु देवी ने तो उसे ललकार कर युद्ध शुरू किया और अंत में कर्नाट राक्षस का वध किया । इसी वध से प्रसन्न होकर विद्रो और वणिको ने माता मातंगी की स्तुति करी। मातंगी ने कुटुंब के सभी मांगलिक कार्यो में मातंगी की स्तुति व पूजा करने की आज्ञा दी। विशेष रूप से माघ मास की कृष्ण तृतीया के दिन मातंगी की वटवृक्ष के नीचे पूजा करने का विशेष महत्व है। इस पूरी कथा के फल स्वरुप कहा जा सकता है। की :-
  1. मोड़ ब्राह्मणों के इष्टदेव श्री राम है और उन्होंने ही हनुमान जी को मोड़ समाज की रक्षा हेतु मातंगी के निवास स्थल मोढेरा पर संरक्षक के रूप में नियुक्त किया है। 
  2. मोड़ समाज की कुलदेवी मातंगी देवी है जिन्होंने राक्षसों के विनाश के लिए विशिष्ट तेजस्वी स्वरुप धारण किया है। वो मातंगी मोदेश्वरी अठारह भुजा वाली है जिनका पूजन कुटुंब के सभी मांगलिक कार्यो में करना चाहिए । 
  3. चेत्री तथा अश्विनी दोनों ही नवरात्री में उपवास और मातंगी की पूजा करने का मोड़ ब्राह्मणों का विधान है । 
  4. मोड़ ब्राह्मन मूल रूप से गुजरात के निवासी है। 
              श्री राम द्वारा रावन की ब्रह्म हत्या हुई जिसके प्रायाषित हेतु श्री राम ने कुल गुरु वशिष्ट से पूछा तब गुरु वशिष्ट ने उतर दिया की आप तो स्वयं भगवान के अवतार हो। परन्तु राम के अतिआग्रह के वश में होकर कुल गुरु वशिष्ट ने कहा की सभी विधि विधान मन की शुद्धी के लिए ही होते है परन्तु फिर भी पृथ्वी की ऊपर एक धर्मरान्य नाम का एक श्रेठ तीर्थ है। वहा यमराज , सूर्य पुत्र ( शनि) , सूर्य पत्नी ( संज्ञा ) ने भी तप किया है यही स्थल ब्रह्म हत्या की निवृति हेतु श्रेठ है। धर्मरान्य में प्रभु श्री राम पूरे परिवार के साथ प्रवेश कर रहे थे तभी उनके विमान, हाथी , घोडे आदि अचानक रुक गए। श्री राम ने गुरु वशिष्ट से कारण पूछा तो कुलगुरु वशिष्ट ने बताया की धर्मरान्य में पैदल चल कर जाना चाहिए यहाँ मातंगी का वास है। तब श्री राम ने सुवर्ण नदी के किनारे विशाल पढाव दिया और वहा अपने विमान, घोडे, हाथी आदि को रोका ।
     नदी में स्नान विधि करी और पैदल चल कर मातंगी के दर्शन किये और देवी की अनुशंसा से धर्मरान्य का जीर्णोधार करने का संकल्प लिया । श्री राम त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा , विष्णु , महेश की आराधना करते है तीनो देवताओ ने वहा प्रकट होकर ब्राह्मणों को दान देने की बात कही । तभी तीनो देवो की उपस्थिति में ही धर्मरान्य का जीर्णोधार और भव्य प्रसाद का निर्माण कार्य शुरू किया। श्री राम ने ब्राह्मणों को ५५ गाँव दान में दिए । तत्पश्चात हनुमान जी वेश्य को लेकर आये एवं खेतो में खेती का कार्य आरम्भ किया । श्री राम ने धर्मरान्य के पुनरुधार के संस्मरण में मोड़ वणिको को एक खड़क और दो चम्मर भेट किये। उसी दिन से विवाह के समय वर अपने पास एक तलवार और दो चम्मर रखता है।
     श्री राम ने अनेक मंदिरों का जीर्णोधार किया । बकुल के वृक्ष के नीचे जहा सूर्य पत्नी संज्ञा ने तप किया था वहा श्री राम ने बहुलार्क नाम का सूर्य का भव्य मंदिर बनाया। जहा पर श्री राम के हाथो ही कुलस्वामी सूर्य की मूर्ति की स्थापना की गयी। आज भी सूर्य मंदिर के अवशेष यथारूप में उपस्थित है और उनकी शिल्प और कलाकृति बेजोड़ और अत्यंत ही दुर्लभ है। इस सूर्य मंदिर को देख कर ये अनुमान लगाया जा सकता है की ये ११ वि शताब्दी में ही निर्मित हुआ होगा। मोहेक्पुर में कन्या कुंज कन्नोज नाम के रजा का राज इस प्रदेश पर शुरू हुआ। वह राजा पराक्रमी था उसने वैष्णव धर्म को छोड़ बोद्ध धर्म को स्वीकार किया। बोद्ध गुरुओं की उपदेशो से वहा की प्रजा भी बोद्ध धर्म स्वीकार करने लगी। राजा ने अपनी पुत्री रत्न गंगा का विवाह वल्लभी राजा के साथ किया । उसने ब्राह्मणों के अधिकार छीन लिए ब्राह्मणों ने श्री राम चन्द्र जी के ताम्र पत्रों पर लिखे हुए दान पत्र भी बताये पर राजा नहीं माना । उसने कहा की तुम्हारे रक्षक हनुमान जी है उन्ही के पास से भूमि ले लेना। सभी ब्राह्मन धर्मरान्य वापस आये । चतुर दलीय करने वाले ब्राह्मन चतुर्विद, अर्थात चतुविधि के नाम से जाने जाते है। चतुविधि ब्रह्म समाज के १५ हज़ार में से २० तथा ३ हज़ार त्रेवाधेया के ११ इस प्रकार कुल ३१ ब्राह्मन रामेश्वर पहुचे ।
     चतुर्वेदी ब्राह्मन वापस आ गए और बाकी के त्रेवैद्य ब्राह्मन अनेक संकट सहते हुए रामेश्वर पहुचे। विद्रोहियों के आक्रमण से प्राचीन पूरण प्रसिद्ध मोढेरा नगरी खंडरो में तब्दील हो गयी। प्रजा और बस्ती अलग अलग दिशा में बिखर गयी इनमे जो अदालाज़ गाँव में गए वो अद्लाजा कहलाये जो मांडल गाँव में गए वो मान्दलिये कहलाये । इस प्रकार अदालजा व मंडलीय दोनों ही जगह निवासरत लोग मुख्यतः तो वणिक ही थे । खेती करने वाले लोग पटेल की जाती से जाने गए तेल का काम करने वाले लोग चंपा नेरी मोड़ और नाव चलाने वाले लोग मधुकर मोड़ जाती के नाम से जाने गए। समय गुजरता गया और गुजरात के राजपूत राजा करण देव वाघेला, दिलली के अल्लोउद्दीन खिलजी , अलफ खान सेनापति के हाथो यह राजा परस्त हुआ संवत १३५६ में गुजरात में मुस्लिम राज सत्ता आई और गुजरात के मंदिर टूटने लगे मोढेरा के मोड़ ब्राह्मन केवल वेद पाठ करने वाले ही नहीं थे वे तो विपरीत परिस्थितियों में स्वयं और परिवार की रक्षा हेतु भी वचन बध थे। मोड़ ब्राह्मणों में जयेष्ट मल्ल ब्राह्मन तो वज्र मुष्टि पहलवान थे और सेना में भी मुख्य थे। सम्पूर्ण मोढेरा गाँव ने मुस्लिन सेना का डट कर सामना किया ।
      मंदाव्य गोत्र के पराक्रमी ब्राह्मन सुभट विठलेश्वर मोड़ ने मोड़ ब्राह्मणों की सेना संगठित की और ६ माह में शत्रुओ को थका दिया। तत्पश्चात दोनों ही सेना में सुलह हुई और फेसला हुआ की ब्राह्मन मुस्लिमो को पांच हज़ार सोने की मोहर दे तो मुस्लिम अपने घर हटाकर जमीन खाली करने को तैयार है। इस प्रकार सुलह होने पर मोढेरा गाँव के दरवाजे खोल दिए गए। आखिर में मोड़ ब्राह्मणों के साथ धोखा हुआ मुस्लिम सेनिको ने मोढेरा को लुट लिया , सूर्य मंदिर को तोड़ दिया , और मातंगी माता की मूर्ति को खंडित करने हेतु आ ही रहे थी इस भय से ब्राह्मणों ने मातंगी मूर्ति को जमीं में गहरी सुरंग ( वाव ) कर मातंगी मूर्ति को लोहे की चैन से बांधकर उसमे समाहित कर दिया । मातंगी मूर्ति को समाहित करने वाली यह वाव ही धर्मवाव के रूप में प्रसिद्ध हुई जो आज भी मोढेरा में यथावत है। जिस दिन मातंगी मूर्ति सुरंग में भेजी गयी उस दिन धुलेटी का दिन था। गुजरात में गायकवाड सरकार की सत्ता में धार्मिक स्थलों की अवनति रुक गयी तथा इस समय मोड़ ब्राह्मन मोढेरा, मालवा, उज्जैन, इंदौर, भोपाल आदि शेहरो में बसने लगे ।
      सयाजी राव गायकवाड ने रेलवे लाइन को मोढेरा तक बनवाया जिससे भक्त आसानी से मातंगी धाम तक पहुच सके । इसी बीच नाथुलाल गिरधारी लाल पारीख ने यह संकल्प लिया की जब तक मातंगी मंदिर का जीर्णोधार नहीं होता तब तक वे सर पर पगड़ी और पैर में मोजडी धारण नहीं करेंगे । ब्रिटिश राज्य में बड़ोदरा शहर की कायाकल्प हेतु लाटरी निकली गयी एवं चंदा एकत्रित किया गे। संवत १८६२ में जीर्णोधार प्रारंभ किया गया विक्रम संवत १८६६ महा सूद की १३ वे दिन अर्थात तेरस के दिन मातंगी माता की प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का दिन आया । दो समर्थ विद्वान् जामनगर निवासी शास्त्री जी हाथी भाई हरी शंकर और अहमदावाद निवासी शास्त्रीजी रामकृष्ण हर्ष जी के हाथो विधि विधान से मातंगी की प्राण प्रतिष्ठा की गयी इसी दिवस को महसूद १३ दिवस अर्थात तेरस के दिन मातंगी का पाटोत्सव आयोजित किया जाता है। 
इस प्रकार आज दिन तक मातंगी की मूर्ति मोढेरा में उस वाव में ही समाहित है वर्षो बाद भी इसे उस वाव में से नहीं निकाला गया कारण यह की जिस समय ब्राह्मणों द्वारा इस मूर्ति को वाव में समाहित किया गया था तब ब्राह्मणों ने इस भय से की मुस्लिमो द्वारा इस मूर्ति को चैन खीचकर वाव में से निकाला नहीं जा सके इस हेतु माता मातंगी के समक्ष यह मनत रखी थी की जब तक मोड़ समाज के लोग मोढेरा में मातंगी के समक्ष एक साथ सवा लाख किलो नमक का भंडारे में उपयोग नहीं करेंगे तब तक मूर्ति को बाहर नहीं लाया जा सकेगा यही कारण है की आज भी मूर्ति उक्त वाव में ही है। मोढेरा भक्त मंडल द्वारा उक्त वाव के चारो और लोहे की जाली से स्थान को सुरक्षित किया गया है , एवं मातंगी धाम मोढेरा में मातंगी की उसी मूर्ति की प्रतिकृति के रूप में मातंगी की मूर्ति स्थापित की गयी ।

मातंगी फोटो गेलेरी

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मातंगी मंदिर झाबुआ फोटो गेलेरी

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चार धाम यात्रा

चार धाम यात्रा- matangi-darshan-jhabua-chaar-dhaam-yatra

 मातंगी ट्रस्ट द्वारा प्रतिवर्ष झाबुआ से यात्रा का आयोजन किया जाता है। जिसमें यात्रा में भाग लेने वाले भक्तो को चार धाम की यात्रा के साथ मॉ मातंगी  धाम की यात्रा भी कराई जाती है इस हेतु भक्तो से अतिन्युनतम शुल्क पर व उच्च गुणवत्ता युक्त सुविधाए प्रदान करते हुए उन्हे यात्रा का लाभ दिया जाता है। यह यात्रा प्रतिवर्ष नियोजीत परसमय पर ले जाई जाती है जिसके लिए यात्रा में शामिल होने वाले भक्तो की सुची बनाकर उस आधार पर आगामी कार्यक्रम नियोजित किएजाते है। 
            यह यात्रा 4 से 5 दिन की होती है परंतु तीर्थ स्थलो की संख्या एवं दुरी के हिसाब से समयावधि घट या बढ सकती है। यात्रा हेतु पुर्ण कार्यक्रम पुर्व नियोजीत होता है। यात्रा में बस मार्ग ,रेल मार्ग आदि का प्रयोग किया जाता है। धार्मिक स्थानो की दुरी अधिक होने के कारण संपुर्ण यात्रा बस मार्ग द्वारा ही करना संभव नही हो सकता है अतः इस हेतु विभिन्न वाहनो के द्वारा स्थलो तक पहुचना पडता है। स्थल तक पहुचने के बाद भक्तो को सभी सुविधाए जैसेः- भोजन ,ठहरना आदि सुविधाए निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती है इस हेतु भक्तो से कोई अन्य राशि नही ली जाती है। 
      यात्रा में बुर्जुग भक्त भी होने के कारण यात्रा हेतु सबसे सुविधाजनक विकल्पो का इस्तेमाल किया जाता है जिससे की भक्तो को किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पडे। इस यात्रा में जाने हेतु भक्तो से केवल उनके दैनिक उपयोग की वस्तुओ को ही साथ लाने का आग्रह किया जाता है शेष संपुर्ण सुविधाए ट्रस्ट द्वारा ही उपलब्ध कराई जाती है। यात्रा में शामिल होने के लिए नियत समयावधि के अंदर ट्रस्ट से संपर्क कर यात्रा का लाभ किया जा सकता हैं ।

यात्रा फॉर्म डाउनलोड करे नीचे डाउनलोड लिंक पर क्लिक करे ।

फॉर्म को पूर्णतः भरकर हमे ईमेल करे ,
या ट्रस्ट के पते पर डाक द्वारा भेजे।

आगामी योजना

   मातंगी ट्रस्ट निम्न बिंदुओ पर आगामी कार्यक्रमो की योजना बनाकर उनके क्रियान्वन की और अग्रसर है-

  1. मातंगी मंदिर का निर्माण पश्चात मंदिर का सौंर्दयीकरण
  2. सर्व ब्राहमण समाज हेतु धर्मशाला का निर्माण करना जो सभी सुविधाओ से सुसज्जीत हो ।
  3. विभिन्न धार्मिक अवसरो को समाजजनो के मध्य वृहद रूप में मनाने हेतु भावी योजनाओ का क्रियानवयन। समाज के बेरोजगार शिक्षित युवक युवतियो हेतु समाज स्तर पर रोजग़ार हेतु व्यवस्था करना।
  4. समाज में होने वाले विभिन्न आयोजन जिनमें विवाह समारोह, यज्ञ, अन्य त्यौहारो हेतु पुर्व नियोजन कार्यक्रम बनाना जिससे कार्यक्रमो को सुचारू एवं सुनियोजित तरीके से संपन्न कराया जा सके।
  5. ट्रस्ट द्वारा आगामी समय में मंदिर प्रांगण में सर्व सुविधायुक्त अतिथिगृह, भोजनालय आदि स्थल बनवाने का प्रस्ताव है।
  6. मदिर प्रांगण में ही एक सुंदर बगीचा बनाने की भी योजना है
  7. समाज में होने वाले विभिन्न समारोह जैसे विवाह परिचय सम्मेलन, यज्ञोपवित संस्कार, शतचंडी यज्ञ , हवन, आदि के समय समारोह स्थान पर भारी मात्रा भक्त उपस्थित होते है इस हेतु एक भव्य हॉल का निर्माण करना
  8. मातंगी मंदिर तक पहुचने का रास्ता अत्यंत पथरीला होने की वजह से भक्तो को कई परेशानियों का सामना पडता है इस हेतु मार्ग डामरीकरण एवं रात्रि में भक्तो के आगमन हेतु उचित प्रकाश व्यवस्था करना है।
  9. उपरोक्त कार्यो को निष्ठापूर्वक आकार प्रदान कर एक सभ्य समाज का निर्माण करना।

दान करे

माता मोढ़ेश्वरी मंदिर – दान एवं सहयोग पृष्ठ

“आपका सहयोग माता की भक्ति और समाज की सेवा में स्थायी योगदान बन सकता है।”
🌸 पवित्र उद्देश्य
सम्माननीय स्वजातीय बंधुओं,
झाबुआ नगर में माता मोढ़ेश्वरी की असीम कृपा से माता मोढ़ेश्वरी मंदिर का निर्माण कार्य सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है। यह मंदिर अब केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और समाजिक चेतना का प्रतीक बन गया है। मंदिर का पूरा निर्माण केवल श्रद्धालुओं के सहयोग और समाज के समर्पित सदस्यों की मेहनत से संभव हुआ। अब यह पवित्र स्थल भविष्य की पीढ़ियों के लिए भक्ति, सेवा और सामाजिक चेतना का केंद्र बन चुका है। 


विगत वर्षों में समाज ने अनेक धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनमें शामिल हैं:
  1. निःशुल्क यज्ञोपवित संस्कार
  2. विधवा विवाह समारोह
  3. वैकुण्ठधाम रथ यात्रा
  4. माता का पाटोत्सव
  5. निराश्रित पेंशन वितरण
  6. प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहन
इन आयोजनों ने समाज में एकता, सहयोग और भक्ति की भावना को मजबूत किया है।

🏛 मातंगी परमार्थ ट्रस्ट – उद्देश्य और सामाजिक भूमिका
“मातंगी परमार्थ ट्रस्ट” झाबुआ का उद्देश्य केवल मंदिर निर्माण तक सीमित नहीं है। अब जब मंदिर निर्माण कार्य पूरा हो चुका है, हमारा ध्यान समाज की निरंतर प्रगति, नवचेतना और सेवा कार्यों पर केंद्रित है।
  • समाज की युवा पीढ़ी को शिक्षित, संस्कारित और सेवाभावी बनाना।
  • बेरोजगार युवाओं के लिए पाठशालाएँ और लघु उद्योग प्रशिक्षण।
  • विवाह योग्य वर-वधु के लिए मातंगी मैट्रीमोनी पोर्टल।
  • समाज के प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को अकादमिक और सामाजिक प्रोत्साहन।
  • समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन, ताकि नई पीढ़ी को संस्कृति और परंपरा से जोड़ें।

ट्रस्ट का यह प्रयास समाज को केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सशक्त बनाने में सहायक है।

💡 सहयोग का महत्व
  • मंदिर अब बन चुका है, लेकिन समाज में नए विकास और सेवा कार्य के लिए सहयोग की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। आपका योगदान:
  • मंदिर के आसपास के सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों के लिए स्थायी संसाधन उपलब्ध कराता है।
  • समाज के शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार संबंधी योजनाओं के विस्तार में मदद करता है।
  • आने वाली पीढ़ियों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बनाए रखता है।
  • आपकी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक बनता है, जो समाज में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
📌 सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
दान केवल धार्मिक कार्य नहीं है। यह समाज में एकता, समर्पण और सेवा का संदेश देता है। मातंगी परमार्थ ट्रस्ट के प्रयासों से अब तक समाज में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं:
  • युवा पीढ़ी में शिक्षा और संस्कार बढ़े।
  • बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार सृजन हुआ।
  • विधवा विवाह, नि:शुल्क संस्कार और अन्य सामाजिक कार्यक्रम संचालित हुए।
  • समाज में नवचेतना और सामाजिक चेतना का प्रसार हुआ।
आपका योगदान इन प्रयासों का हिस्सा बनता है और इसे भविष्य में और व्यापक स्तर पर विस्तारित किया जा सकेगा।

माता मोढ़ेश्वरी मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है, लेकिन अब यह समाज के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन चुका है। मातंगी परमार्थ ट्रस्ट इस पवित्र कार्य में आपकी सहभागिता और सहयोग की अपेक्षा करता है। आपका योगदान इस पवित्र कार्य में अमूल्य है। आइए, हम सभी मिलकर झाबुआ नगर और समाज के लिए सशक्त, शिक्षित और धर्मपरायण समुदाय का निर्माण करें।

माता मोढ़ेश्वरी की कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे।

🙏 मातंगी माता की असीम कृपा से निर्मित इस भव्य धाम में, आपका हर योगदान एक दिव्य आशीर्वाद बनकर समाज और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचेगा।

मातंगी ट्रस्ट सदैव इस उद्देश्य से कार्यरत रहा है कि धार्मिक स्थल केवल पूजा का स्थान न होकर, समाज के उत्थान और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का केंद्र भी बने। मंदिर प्रांगण में विशाल पांडाल, नक्षत्र वाटिका, बालाजी-हनुमान मंदिर, स्फटिक शिवलिंग के साथ शिवमंदिर, तालाब और धर्मशाला जैसी सुविधाएँ इसी संकल्प का प्रमाण हैं। इन व्यवस्थाओं के संचालन और आने वाले समय में अतिथिगृह, भोजनालय, भव्य सभागार और श्रद्धालुओं की सुविधाओं के लिए आधुनिक ढाँचों के निर्माण हेतु आपके सहयोग की आवश्यकता है।  

         आपका दान सीधे ट्रस्ट के बैंक खाते में सुरक्षित रूप से जमा होगा। इस पेज पर आपको केवल वही तीन ज़रूरी जानकारी मिलेगी, जिनसे दान की प्रक्रिया आसान और पारदर्शी बन सके: हमारा प्रयास है कि हर श्रद्धालु बिना किसी बाधा के इस दिव्य कार्य का हिस्सा बन सके। आपका हर अंशदान न केवल मंदिर की सेवा में लगेगा, बल्कि समाज में शिक्षा, संस्कार, संस्कृतियों और परंपराओं के संरक्षण में भी उपयोग किया जाएगा।
🙏 आपका सहयोग ही इस धाम की आत्मा है। माँ मातंगी आपके जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से परिपूर्ण करें।
ACCOUNT NUMBER IFSC CODE BRANCH NAME
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सुविधाए

 मातंगी धाम – धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र

मातंगी मंदिर, झाबुआ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के लिए आस्था, संस्कृति और आध्यात्मिकता का विशाल केंद्र बन चुका है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु न केवल पूजा-अर्चना करते हैं, बल्कि वे प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक आयोजनों का भी अनुभव करते हैं।

🛕 वर्तमान संरचना और विशेष आकर्षण

1. विशाल पांडाल
मंदिर प्रांगण में एक विशाल पांडाल बना है, जहाँ नियमित रूप से विविध धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। यह पांडाल भक्तों को एक साथ जोड़ने और सामूहिक भक्ति का अनुभव कराने का प्रमुख स्थल है।

2. नक्षत्र वाटिका
मंदिर प्रांगण का एक विशेष आकर्षण है नक्षत्र वाटिका, जिसमें सभी नौ ग्रहों के अनुरूप वृक्ष लगाए गए हैं। ज्योतिष और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार लगाए गए हजारों पौधे और वृक्ष यहाँ का वातावरण न केवल पवित्र बल्कि प्राकृतिक ऊर्जा से परिपूर्ण बनाते हैं।

3. विशाल तालाब

प्रांगण से सटा हुआ विशाल तालाब मंदिर की शोभा को और बढ़ाता है। यह तालाब भक्तों और आगंतुकों के लिए शांति और सुकून का स्थान है।

4. श्री बालाजी हनुमान मंदिर
मंदिर परिसर में ही श्री बालाजी हनुमान मंदिर की स्थापना की गई है। यहाँ प्रत्येक शनिवार और मंगलवार को सुंदरकाण्ड पाठ का आयोजन होता है। साथ ही हनुमान जयंती पर तीन दिवसीय भव्य कार्यक्रम संपन्न होते हैं, जिनमें हजारों भक्त उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।

5. विशाल शिव मंदिर
प्रांगण में ही स्फटिक शिवलिंग की स्थापना कर एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण किया गया है। यह मंदिर भक्तों को दिव्य शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कराता है।

🏨 भक्तों के लिए उपलब्ध सुविधाएँ

  1. आवास व्यवस्था: दर्शनार्थियों और समाज के लोगों के ठहरने हेतु उपयुक्त स्थान।
  2. भोजन सुविधा: धार्मिक कार्यक्रमों और दैनिक आगंतुकों के लिए भोजनालय और भंडारे की परंपरा।
  3. धर्मशाला: बड़े सामाजिक और धार्मिक आयोजनों के लिए विशाल धर्मशाला की व्यवस्था।
  4. समारोह स्थल: समाज में होने वाले विवाह, संस्कार और बड़े आयोजनों के लिए उपयुक्त स्थान।

🌿 आगामी विकास योजनाएँ
मंदिर को और अधिक सुव्यवस्थित एवं सुविधायुक्त बनाने के लिए ट्रस्ट द्वारा कई योजनाएँ बनाई गई हैं:

  • सर्व-सुविधायुक्त अतिथिगृह और भोजनालय – ताकि बाहर से आने वाले भक्तों को उचित ठहरने और भोजन की सुविधा मिल सके।
  • सुंदर बगीचा – संध्या समय भक्त हरियाली युक्त वातावरण में विश्राम और ध्यान कर सकें।
  • भव्य हॉल का निर्माण – विवाह परिचय सम्मेलन, यज्ञोपवित संस्कार, षटचंडी यज्ञ, हवन और अन्य बड़े समारोहों को बिना किसी विघ्न के संपन्न कराने के लिए।
  • सड़क और प्रकाश व्यवस्था – मंदिर सड़क से लगभग 200 मीटर की दूरी पर है और रास्ता पथरीला होने से भक्तों को कठिनाई होती है। ट्रस्ट और नगरपालिका द्वारा इस मार्ग का डामरीकरण और उचित प्रकाश व्यवस्था शीघ्र कराई जाएगी।

🚧 मार्ग और प्रकाश व्यवस्था

  1. मंदिर तक आने-जाने वाले मार्ग को विकसित करना प्राथमिकता में है।
  2. डामरीकरण का कार्य जल्द शुरू होगा ताकि पैदल और वाहन से आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा मिले।
  3. रात्रि में सुरक्षित आवाजाही के लिए आधुनिक लाइटिंग सिस्टम लगाया जाएगा।
  4. यह कार्य नगरपालिका और ट्रस्ट की देखरेख में समय पर पूरा किया जाएगा।

✨ मातंगी धाम – भविष्य की दृष्टि

मातंगी धाम आज पूरे समाज के लिए गर्व और आस्था का प्रतीक बन चुका है। यहाँ की नक्षत्र वाटिका, विशाल पांडाल, बालाजी हनुमान मंदिर, शिव मंदिर, तालाब और धर्मशाला श्रद्धालुओं को एक संपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव कराते हैं। ट्रस्ट का यह संकल्प है कि आने वाले वर्षों में इसे और विकसित कर झाबुआ नगर का प्रमुख तीर्थ स्थल बनाया जाए। हम सभी भक्तों और समाज के सहयोग से मातंगी धाम को न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनाएँगे।

आरती ,स्तुति एवं चालीसा

माँ मातंगी स्तुति व चालीसा - Matangi Darshan
माँ मातंगी स्तुति व चालीसा
माँ मातंगी मोढेश्वरी चालीसा
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मंदिर विषयक

  माँ मातंगी धाम: प्रकृति, शक्ति और आस्था का दिव्य संगम

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 माँ मातंगी धाम, मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक स्थल है। यह धाम दस महाविद्याओं में से एक, देवी मातंगी को समर्पित है, जिन्हें वाणी, ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है। माँ मातंगी को मोढ़ ब्राह्मण समुदाय की कुलदेवी के रूप में भी पूजा जाता है। झाबुआ (मध्य प्रदेश) में स्थित माँ मातंगी धाम, केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि शांति, आस्था और प्रकृति का एक अनूठा केंद्र है। चारों ओर घनी हरियाली से आच्छादित यह धाम, जैसे प्रकृति की गोद में समाया हुआ है। जैसे ही आप मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं, हरियाली और सुंदरता से भरे दृश्य आपकी आँखें खोल देते हैं, मानो आप किसी प्राचीन और दिव्य लोक में आ गए हों।

धाम का यह विहंगम और शांत वातावरण स्वतः ही यह अनुभूति कराता है कि यह स्थल अनादि काल से ही किसी दैवीय शक्ति का प्रत्यक्ष निवास रहा होगा। इस विशालता और वर्षों की प्राचीनता के बावजूद, आज भी इसकी हरियाली आच्छादित वादियाँ उसी दिव्य उपस्थिति और पवित्रता की गवाही देती हैं।
  
  मंदिर का इतिहास और महत्व (History & Significance)
माँ मातंगी धाम एक नव-निर्मित भव्य मंदिर है, जिसका इतिहास यहाँ स्थित सिद्धपीठ बालाजी धाम से जुड़ा हुआ है।

निर्माण तिथि
झाबुआ में नवनिर्मित मातंगी मंदिर की स्थापना और माँ मातंगी की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा फरवरी 2011 में एक भव्य चार दिवसीय कार्यक्रम के साथ की गई थी, जिसमें माँ के पटोत्सव को अत्यंत धूमधाम से मनाया गया था।
  • सिद्धपीठ बालाजी धाम
मातंगी मंदिर का प्रांगण ही सिद्धपीठ बालाजी धाम कहलाता है। इस प्रांगण में वर्ष 1993 में एक सुंदर मंदिर का निर्माण किया गया था। यहाँ पिछले 16 वर्षों से भी अधिक समय से प्रतिदिन और हर शनिवार को सुंदरकांड का नियमित पाठ किया जा रहा है।
पुराणों के अनुसार, किसी भी स्थान पर लगातार 12 वर्षों तक नियमित रूप से सुंदरकांड का पाठ करने से वह स्थान सिद्ध हो जाता है। यही कारण है कि यह स्थल सिद्धपीठ बालाजी धाम के नाम से विख्यात है, जो माँ मातंगी धाम की पवित्रता को और बढ़ाता है।
  • माँ मातंगी: कुलदेवी
माँ मातंगी मोढ़ ब्राह्मण समाज की कुलदेवी हैं। इन्हें महाविद्याओं में से एक, तांत्रिक देवी और हिन्दू देवी पार्वती का ही एक रूप माना जाता है। माँ मातंगी वाणी, संगीत, ज्ञान और कलाओं को नियंत्रित करती हैं, इसलिए उनकी उपासना विशेष फलदायी होती है।
  • हमारी अवस्थिति (Location & Connectivity)
स्थान और कनेक्टिविटी
यह मंदिर झाबुआ शहर के मध्य भाग में इंदौर-अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-47) पर स्थित है। यह अपने हरे-भरे वातावरण और शांत परिसर के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थल इंदौर (लगभग 150 कि.मी.) और दाहोद (लगभग 75 कि.मी.) जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रेल मार्ग से आने वाले भक्तों के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन मेघनगर है, जो धाम से मात्र 15 कि.मी. दूर है।
  
नजदीकी गाँव और कस्बे
धाम के पास ही कई छोटे-छोटे गाँव और कस्बे हैं, जैसे: रानापुर, थांदला, जोबट, और मेघनगर, जो कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हैं।

मेघनगर स्टेशन पहुँचने के बाद, भक्तगण बिना किसी परेशानी के बस, जीप या अन्य स्थानीय साधनों के माध्यम से आसानी से माँ मातंगी धाम तक पहुँच सकते हैं और इस पवित्र और प्राकृतिक स्थल की दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं।

बालाजी धाम

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    मातंगी मंदिर प्रांगण में ही सिध्दपीठ बालाजीधाम है। बालाजी के इतिहास के बारे मे तो किसी के पास वास्तविक जानकारी तो नही है लेकिन बताया जाता है कि कभी घने जंगलो के बीच पहाडी पर हनुमानजी का छोटा सा चबुतरा हुआ करता था कृषि विभाग के कर्मचारी नित्य पुजन प्रारंभ किया । 
             वर्ष 1993 में जनसहयोग से सुंदर व मनोरम मंदिर का निर्माण हुआ और विधिवत भगवान की प्राण प्रतिष्टा का गई।पिछले 16 वर्षो से प्रतिदिन यहॉ रामायण का पाठ किया जा रहा है। प्रति शनिवार मंदिर में सुंदरकांड का पाठ भी किया जाता है। पुराणो के अनुसार नित्य पुजन पाठ लगातार 12 वर्षो तक करने से वह स्थान सिद्व हो जाता है। इसलिए बालाजी धाम को सिद्वपीठ बालाजी धाम कहा जाताहै। मंदिर की देख रेख का जिम्मा कृषि विभाग के कर्मचारी श्री शिवनारायण पुरोहित पिछले 16 वर्षो से सभाल रहे है। श्री पुरोहित की सेवानिवृति का समय निकट होने से अब यह दायित्व सभी कई सहमति से श्री राकेश त्रिवेदी को सौपा या है वे कार्य पुरी निष्ठा से कर रहे है।

परशुराम फोटो गेलेरी

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मोढेश्वरी स्तुत्यष्टक

देवी मोढ द्विजो तणी भगवती मातंगी जे मातृतारक्षा मोढ समस्तनी करी रही श्री मोढ मातंगिकासिंहारूढ थई अढार भुजथी चका युधो धारती,सीताराम थकी समर्चित महा मोढेश्वरी शोभती...
धर्मा रण पुराण पुण्य स्थलमां श्री राम अध्यक्षमा,सीताराम समेत यज्ञ करता मोढेश्वरी साक्षीमां,उदगाता सह्ययाजुषो मली करो मोढर्षिओ प्रार्थना,तेथी तुं परितुष्ट मोढ पर छे, नित्य अभ्यर्थना...
गोत्रोनो समवाय स्थापी जगमां विप्रो थकी पूजता,पट मोढा द्विगिभागी वैश्यदलमां तु नित्य छे वंदिता,तारे पूर्ण कृपा थकी प्रसरी छे मोढो तणी वल्लिका,पूजाने करी वंदना तुज पदे, अर्पे तेने मालिक...
धर्मोद्वारक रामचंद्र करतां तारे पूजा प्रेमथीयज्ञ स्तंभ सभा सुमंडप रच्या मोढेश्वरी नामथी,स्नानार्थे पृथु सूर्यकुंड रचना श्री विश्वकर्मा तणी,छे अदभूत निश्वलेष्ट कृतिए श्री मोढ देवी तणी...
देवीना गणमां गणेश्वरी थई, वापी तटे तुं वसे,वापी कूप तणा दयार्द जल तुं अंतरथी पाता हसे,भक्तोने द्विजवर्य मोढ सघलां तारी कृपामां वसे,छाया छयी अखंड तारी जगमां तुं देवी सौमां वसे...
देवीने द्विज मोढ ज्यां परवरी छोडी गया पुरी,देवी सागर तुल्य वावजलमां डूबेल ते कालथी,ज्यांथी ब्राह्मण-पुण्य कर्म फलदा देवी पूजा लोप छे.त्यांथी मोढ विरकत संग तजती जे मोढनो प्राण छे...
मोढोत्पिति अने विकास करवा श्री रामनी लालसा,मोढेरा युंरी “मूलराज” हठथी मोढे करी खालसा,तोये वृक्ष समग्र मोढ कुलनुं, पट मोढ शाखा थतां,मोढेरा कुलदेवीने नमनथी सौ मोढ पुंजी जता...
मातंगीनो विनथी स्तुति पाठ कीधो,वंदी शिरे, हृदयथी बहु ल्हाव लीधो,माता दयाली तुं द्वार बधां समान,मोढेश्वरी तव पदे करूं हुं प्रणाम...
पुष्पांजली भगवती पर थाती ज्यारे,स्तोत्रो भणी हृदयथी धरूं ध्यान त्यारे,पूजा प्रदोष समये विधिथी करूं ज्यां,मोढेश्वरी कुशल थै करूणा करे त्यां...
स्तोत्र शुद्ध हृदये भणशे प्रदोषे,तेना खरे त्रिविध ताप समाई जाशे,मोढेश्वरी द्विजवरा हृदयेष्ट देवी,लक्ष्मीरूपी जननी तुं परमेष्ट देवी...१०

श्री मातंगी मोढेश्वरी चालीसा



वंदु विनायक विध्नहर, शारद करो सहाय,
आनंदनी याचना मोढेश्वरी गुण गवाय.प्रणमुं पाय मातंगी मात,मोढेश्वरी नाम तुज ख्याता (१)
मातंगी वास वाव मही कीधो,आश्रय सर्व मोढोने दीधो, (२)
सोल शृंगार सिंहारूढ शोभे,भुज अढार दर्शन मन लोभे (३)
वंदन चरणामृत सुखदाई,आतमना पड शत्रु हणाये (४)
भरतखंड
शुभ पश्र्विम भागे,धरमारण्य क्षेत्र तप काजे, (५)
साधक रक्षक भट्टारीका कहावे,तपस्वी तप तपवा अही आवे (६)
देव देवी जपतप अहीं जापे,मा भट्टारीका तप रक्षण आपे (७)
तीरथ सरस्वती सुखदाई,पितृ शांति अहीं पींडथी थाये. (८)
मोक्ष धाम देहुती माता,आश्रम कपिल शास्त्र विख्याता (९)
मोढेरा शुभ स्थान प्रतापी,मोढेश्वरी चतुर युग व्यापी (१०)
सूर्य मंदिर बकुंलार्क अजोडा,विश्वकर्माकृत रविकुंड चौडा (११)
धरमारण्य धरा अति पावन,श्री रामयज्ञे मातंगी सुहावन (१२)
महासुद तेरस सुखदाता,प्रगट्यां मातंगीयज्ञे माता (१३)
जयजयकार जगत मही थाये,सुमन वरसे देवो जय गाये (१४)
सूर्यकुंड सुभग फलदाता,झीले जल मातंगी माता (१५)
श्री रामसीता यज्ञ आराधे,सत्यपुरे मातंगी साधे (१६)
लक्ष्मीरूप मातंगी माता,पूजन नैवेद सर्व सुखदाता (१७)
वडा, लाडु, दुधपाक सुहावे,नैवेद धरे सीता प्रिय भावे (१८)
समस्त मोढ तणी कुलमाता,अष्ठसिध्धि नवनिधि फलदाता (१९)
महासुद तेरस थाल धराये,मोढ चडती दिन प्रतिदिन थाये (२०)
अष्टादश भुज आशिष आपे,स्थान नीज सत्यपुरे स्थापे (२१)
सतयुगे सतपुरी कहावे,त्रेतानाम महेरकपुर भावे (२२)
द्वापर युग मोहकपुर सोहे,मोढेरा कलयुग मन माहे (२३)
धर्मराज शिव तप आराधे,सहस्त्र यर्षे शिव दर्शन साधे (२४)
प्रगट्यां शिव शुभ आशिष आपे,स्थान नीज धर्मेश्वर स्थापे (२५)
वदे महेश्वर कृपा निधाना,विशावनाथ काशी समस्थाना (२६)
मात रांदल अश्वनी रूप लीधा,ध्वादश वर्ष कठीन तपकीधां (२७)
सूर्यराणी रांदल सुखदायी,उपनामे संज्ञा कहेवाये (२८)
तप प्रभाव संज्ञा सुखदाई,पति सूर्यदेवमुख दर्शन थाये (२९)
संज्ञाए ज्यां तप आराध्या,सूर्य मंदिर रामे त्यां बांध्या (३०)
प्रति सुद तेरस व्रततप थाये,मले मान्युं यम भीती जाये (३१)
पूजे कन्या मन कोड पुराये,तपथी विधवाना दु:जाये (३२)
सेवे सधवा सर्व सुख थाये,त्र्हेम, मद अने कुसंप जाये (३३)
नम: मातंगी नाम मुख आवे,भूत पिशाच भय अति दूर जावे (३४)
मोढेश्वरी तव पूजन प्रभावे,सत्य दया तप सौच दिल आवे (३५)
कष्ट भंजन मातंगी माता,बने सर्व ग्रहो सुखदाता (३६)
विद्यार्थी मातंगी जप जापे,वधे विद्या, बुद्धि धन आपे (३७)
मातंगी यात्रा अति सुख आपेकर्म बंधन भवभवना कापे (३८)
दलपतराम मात गुण गाये,उपनाम आनंद कहेवाये (३९)
संवत वीस सुडतालीस मांहे,मातंगी चालीसा आनंद गाये (४०)
दोहा:
श्री मोढेश्वरी चालीसा, भावे रोज भणायवधे विद्या, धन, सुसंतति, पदारथ चार पमाय
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मातंगी पारमार्थिक ट्रस्ट
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